
बनारस में शूटिंग का पहला दिन था। छोटे शहरों की ‘सिनेमाई जिज्ञासा’ भीड़ में बदलने लगी थी। उसी भीड़ में से कुछ नौजवान यह कहते हुए नज़दीक आ रहे थे कि चलो देखते हैं ‘हीरो’ कौन है? जैसे ही उनकी यह बात मेरे कानों तक पड़ी, ‘ब-खुदा’ मैं छुप गया था। वजह बहुत सीधी सी है। उनकी उत्सुकता को ‘निराशा’ में नही बदलना चाहता था । मुझे पता है ‘हीरो’ क्या होता है। रोज़ आइना देखता हूं इसलिए किसी गलतफहमी में नहीं हूं।..CONTINUE READING
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